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Wednesday 28 February 2018

मुनिश्री विभंजन सागर जी मुनिराज का...

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श्री पाश्र्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर अशोकनगर (म.प्रदेश) में आज प्रात: काल श्रमण श्री विभंजन सागर जी मुनिराज का 7वां दीक्षा दिवस समारोह बड़े ही हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न किया गया।

प्रात: काल की बेला से ही कार्यक्रम की सुरुबात हुई और सभी भक्त लोगों ने अभिषेक किया। ततपश्चात मुनिश्री के मुखारबिंद से शान्तिधारा का वाचन किया गया। शांतिधारा के पश्चात पुज्य गणाचार्य विरागसागर जी मुनिराज के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन मन्दिर कमेटी के कोषाध्यक्ष एवं दीपक जैन (ललितपुर) ने किया।

मंगलाचरण पूजा जैन, अनुष्का जैन, (अशोक नगर) और प्रगति जी (सागर) ने किया। ततपश्चात पंचायत ट्रस्ट कमेटी वामा देवी महिला मण्डल, विमर्श जागृति मण्डल, पाठशाला के दीदियों के द्वारा एवं मुनिश्री के ग्रहष्थ अवस्था के परिवार जनों के द्वारा श्री फल भेंट किये गए वा ग्वालियर से आये हुए अतिथियों द्वारा श्री फल भेंट किये गए ततपश्चात उनका सम्मान किया गया। उसके बाद मुनिश्री के पाद प्रक्षालन का सभाग्य श्रीमति पंकजा सुभाष जैन (कैची) को मिला।

विमर्श जागृति महिला मंच, वामा देवी महिला मण्डल एवं पार्वनाथ परिवार द्वारा भक्ति भाव पूर्वक मुनिराज की संगीत मय पूजन की गई। मुनिराज को इंजीनियर अनिल जैन एवं अन्य साधर्मियों द्वारा शास्त्र भेंट किये गए। मुनिराज के परिवार जन का सम्मान किया गया एवं मुनिश्री द्वारा रचित समग्र ग्रन्थ का विमोचन किया गया।

आज मुनिराज को नई पिच्छिका भेंट करने का सभाग्य अवनीश जैन के परिवार को मिला एवं मुनिश्री की पुरानी पिच्छी को प्राप्त करने का स्वभाग्य मुनिश्री की गृहस्थ अवस्था की माता श्रीमति शांति देवी (ललितपुर) बालो को प्राप्त हुआ। कार्यक्रम में स्थानीय अशोकनगर की विभिन्न कालोनियों से ओर साथ ही ललितपुर, सागर, ग्वालियर आदि जगहों से भक्त आये और कार्यक्रम में सम्मलित हुए। इसी बीच मुनिश्री का मंगल प्रवचन हुआ।

श्री पाश्र्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर अशोकनगर (म.प्रदेश) में आज प्रात: काल श्रमण श्री विभंजन सागर जी मुनिराज का 7वां दीक्षा दिवस समारोह बड़े ही हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न किया गया। प्रात: काल की बेला से ही कार्यक्रम की सुरुबात हुई और सभी भक्त लोगों ने अभिषेक किया।

ततपश्चात मुनिश्री के मुखारबिंद से शान्तिधारा का वाचन किया गया। शांतिधारा के पश्चात पुज्य गणाचार्य विरागसागर जी मुनिराज के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन मन्दिर कमेटी के कोषाध्यक्ष एवं दीपक जैन (ललितपुर) ने किया। मंगलाचरण पूजा जैन, अनुष्का जैन, (अशोक नगर) और प्रगति जी (सागर) ने किया।

ततपश्चात पंचायत ट्रस्ट कमेटी वामा देवी महिला मण्डल, विमर्श जागृति मण्डल, पाठशाला के दीदियों के द्वारा एवं मुनिश्री के ग्रहष्थ अवस्था के परिवार जनों के द्वारा श्री फल भेंट किये गए वा ग्वालियर से आये हुए अतिथियों द्वारा श्री फल भेंट किये गए ततपश्चात उनका सम्मान किया गया। उसके बाद मुनिश्री के पाद प्रक्षालन का सभाग्य श्रीमति पंकजा सुभाष जैन (कैची) को मिला।

विमर्श जागृति महिला मंच, वामा देवी महिला मण्डल एवं पार्वनाथ परिवार द्वारा भक्ति भाव पूर्वक मुनिराज की संगीत मय पूजन की गई। मुनिराज को इंजीनियर अनिल जैन एवं अन्य साधर्मियों द्वारा शास्त्र भेंट किये गए। मुनिराज के परिवार जन का सम्मान किया गया एवं मुनिश्री द्वारा रचित समग्र ग्रन्थ का विमोचन किया गया।

आज मुनिराज को नई पिच्छिका भेंट करने का सभाग्य अवनीश जैन के परिवार को मिला एवं मुनिश्री की पुरानी पिच्छी को प्राप्त करने का स्वभाग्य मुनिश्री की गृहस्थ अवस्था की माता श्रीमति शांति देवी (ललितपुर) बालो को प्राप्त हुआ। कार्यक्रम में स्थानीय अशोकनगर की विभिन्न कालोनियों से ओर साथ ही ललितपुर, सागर, ग्वालियर आदि जगहों से भक्त आये और कार्यक्रम में सम्मलित हुए। इसी बीच मुनिश्री का मंगल प्रवचन हुआ।

मुनिश्री ने अपने मंगल प्रवचन के माध्यम से बताया- नई खूबी, नई रंगत, नए अरमान पैदा कर, तू इस खाक के पुतले में भगवान पैदा कर।। इन पंक्तियों के माध्यम से बताया जीवन में कुछ नया प्राप्त करने का प्रयाश करना चाहिए। पुरानी रीति, रिवाज, रूढिय़ों को छोड़कर  समय के साथ बदलने का प्रयाश करना चाहिए। समय जीवन की सार्थकता है, समय बर्बाद करना तिल- तिल कर मरने जैसा है।

ध्यान रखना ये समय का सदुपयोग नहीं दुरुपयोग है। जब व्यक्ति समय का उपयोग या तो अतीत की स्मृतियों में खोय रहकर करता है या फिर भविष्य के सपनों को देख देखकर करता है। जीवन मे अतीत का जिक्र नहीं ओर भविष्य की फिक्र नहीं जो है वह सिर्फ वर्तमान है, ऐसे समय का सदुपयोग करना चाहिए। समय का उपयोग संयम को धारण करने में है। हमारी आत्मा में ही परमात्मा है उसे अंदर खोजों बाहर परमात्मा नहीं मिलेगा।

जब भी कोई काम करे तो संकल्प और समर्पण के बिना कोई काम नहीं होता जीवन मे संकल्प ओर समर्पण के बिना सफलता की सीढिय़ों पर चढ़ पाना असंभव है। समस्याएं किसके जीवन में नहीं आती परेशानियां किसके जीवन में नहीं आती? सभी के जीवन में आती है। तकलीफे, जाती, भांति और धर्म को नहीं मानती है इसलिए अपने मन के विचारों को पवित्र करे। मुनिश्री ने बताया जब विचार बदल जाते है तब आचरण बदलने में देर नहीं लगती। जीवन के किसी भी पल में वैराग्य उमड़ सकता है, संसार मे रहकर प्राणी संसार को तज सकता है।

ओरो के लिए जीना अपरिग्रही है क्योंकि स्वार्थी से बड़ा संसार मे कोई परिग्रही नहीं है। तो जीवन में कुछ नया करने का प्रयाश करे, संयम धारण करने का प्रयाश करे। मुनिश्री ने बताया पिताजी कपड़े पहनते थे बेटे ने कपड़े का त्याग ही कर दिया। पितजी बाहन से चलते थे बेटा पैदल चलने का नियम लेकर चल दिया। पिताजी अपने बालों को कटवाते थे बेटे ने अपने हाथों से केशलोंच करना प्रारम्भ कर दिया। पिताजी दिन भर महनत करते, दोनों हाथ से मेहनत करते तब जाकर एक हाथ से खाना खा पाते लेकिन बेटे ने कहा मैं कोई महनत नहीं करूंगा, मैं एक हाथ से भी महनत नहीं करूंगा पर दोनों हाथों से कहूंगा। साधु का जीवन अपना लिया और अपने जीवन में एक नया पन लाये ।मुनिश्री ने बताया श्रेष्ठता और ज्येष्ठता मानव की नहीं अपितु साधना की है, संयम की है आत्म साधना के परम एवं चरम बिंदु तक पहुंचने वाले स्वपान का नाम दीक्षा है। दीक्षा के लिए वैराग्य अति आवश्यक है।

वैराग्य उतपत्ति के 10 कारण है:


1. स्वयं की इच्छा से ली जाने वाली दीक्षा।


2. क्रोध से ली जाने वाली दीक्षा।


3. दरिद्रता के कारण ली जाने वाली दीक्षा।


4. स्वप्न के निमित्त से ली जाने बाली दीक्षा।


5. पहले की गई प्रतिज्ञा के कारण ली जाने वाली दीक्षा।


6. जन्मान्तरों की स्मृति हो जाने पर ली जाने वाली दीक्षा।


7. रोग का निमित्त मिलने पर ली जाने वाली दीक्षा।


8. अनादर के कारण लेने वाली दीक्षा।


9. देव के द्वारा प्रतिबद्ध होकर ली जाने वाली दीक्षा।


10. पुत्र के अनुबन्ध से ली जाने वाली दीक्षा।


इन में से कोई भी कारण वैराग्य का बन सकता है। दीक्षा वही ले सकता है जिसका तन भी स्वस्थ्य हो और मन भी स्वस्थ्य हो। तन से  बूढ़ा व्यक्ति दीक्षा ले सकता है लेकिन मन से बूढ़ा व्यक्ति दीक्षा नहीं ले सकता इसलिए भले ही तन से बूढ़े हो जाओ लेकिन मन से बूढ़े मत होना।

त्याग और वैराग्य की उत्कट भावना से ही साधक दीक्षा ग्रहण करता है। दीक्षा  मोम के दांतों से लोहे के चने चबाने के समान दुष्कर है। दीक्षा अगाध और अपार महासागर को पार करने के समान है। पुज्य गुरुवर विरागसागर जी मुनिराज ने आज के दिन मुझे दीक्षा प्रदान की, संयम दिया, संयम का उपकरण दिया और मोक्ष मार्ग में आगे बढ़ाया।

मुनिश्री ने बताया जीवन मे तीन प्रकार के महान व्यक्ति होते है -एक महान जन्म से होते है। एक महान जीवन को बनाते है और एक न जन्म से महान होते है, न ही जीवन को महान बनाते है पर अपने आप को महान मानने लगते है। जो जन्म से महान होते है वो तीर्थंकर महापुरुष होते है।

जो अपने जीवन को महान बनाते है वो साधु सन्त हुआ करते है और जो अपने जीवन को, अपने आप को महान मानने लगते है वो श्रावक होते है। उसी प्रकार हमारे जीवन को महात्मा बनाने के लिए महान बनाने के लिए हमारे जीवन मे तीन पड़ाव है -बचपन, युवापन, ओर बृद्धपन। हमारे बचपन को मां सम्भालती है, युवापन को महात्मा सम्भालते है और बृद्धपन को परमात्मा सम्भालते है। ये ही हमारे जीवन को उन्नति की ओर अग्रशर करते है। मुनिश्री ने बताया जो साधु बन जाता है वह पंचमकाल का सबसे बड़ा चमत्कार है।

जिस इंसान ने मुनि दीक्षा ले ली संयम के मार्ग में आगे बढ़ गया समझ लो मोक्ष जाने की कगार में बो लग चुका है। दीक्षा लेने बाले साधु उनके दर्शन मात्र से पूण्य बन्ध होता है। साधु तीर्थ रूप है। कहा भी है तीर्थ तो समय आने पर फल देते है परंतु साधूओं की संगति का फल तत्काल प्राप्त हो जाता है।

मुनिश्री ने अपने गुरु के प्रति समर्पण भाव बताते हुए कहा जिस प्रकार बीज अपना समर्पण माली को करता है तो बट वृक्ष बन जाता है, मिट्टी अपना समर्पण कुम्हार को करती है तो वो गागर बन जाती है, बून्द जब अपना समर्पण सागर को करती है तो वो सागर बन जाती है, जब  एक पाषाण शिल्पिकार को समर्पण करता है तो परमात्मा का रूप ले लेती है और जब एक भक्त, एक शिष्य अपना समर्पण गुरु को करता है तो वह भी परमात्मा का तूप ले लेता है  इसलिए समर्पण के साथ संयम को धरण करना चाहिए। मुनिश्री ने बताया भेष बदलना दीक्षा नहीं है मन की दीक्षा ही दीक्षा है।

बाहर से रूप बदलना दीक्षा नहीं है अन्दर से बस्त्रो को और विकारों को उतार देना ही दीक्षा कहलाती है


इसलिए दृष्टि को बदलों हमारा जीवन सब कुछ बदला ही नजर आएगा। ऊंचाइयों पाने के लिए रूप, रंग, रुपया की जरूरत नहीं होती। उचाइयां पाने के लिए संस्कारों की जरूरत होती है इसलिए जीवन में हर मां अपने बच्चे को ऐसे संस्कार दे कि वह महापुरुष जैसा काम करे।

महापुरुष कभी पैदा नहीं होते, महापुरुष तो बनना पड़ता है जो केवल संस्कारों से होता है। इसलिए संस्कार बड़ो के चरण छूने से मिलते है। घुटने छुओगे तो घुटनों में दर्द मिलेगा और चरण छुओगे तो चारित्र मिलेगा। हमारे बीच में उठने बैठने बाले कुछ लोग जीवन की सफलता प्राप्त कर लेते है। बस बो जीवन जीने का तरीका बदल लेते है।

और संयम के मार्ग में आगे बड़कर मोक्ष मार्ग को प्रशस्त कर लेते है। आज के दिन मेरा मोक्ष मार्ग प्रशस्त हुआ। मैं त्री भक्ति पूर्वक अपने गुरु के चरणों मे कोटि -कोटि वंदन करता हूं, नमस्कार करता हूं और मुनिश्री ने उपस्थित समस्त आगन्तुक लोगो को अपना ढेर सारा बहुत- बहुत आशिर्बाद दिया और सबके संयम की भावना भाई।
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